केंद्र के नए कृषि कानूनों (Farms Laws) के खिलाफ किसान पिछले 17 दिनों से दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं. सरकार बातचीत के जरिये गतिरोध को खत्म करने के प्रयास में लगी है, लेकिन किसान कानूनों को रद्द करने से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं. इस बीच, दिल्ली-जयपुर को बंद करने के लिए किसानों ने दिल्ली की ओर कूच करना शुरू कर दिया है. किसानों का ट्रैक्टर मार्च शुरू हो गया है.
किसानों और सरकार के बीच छह दौर की वार्ता हो चुकी है. इन बैठकों में अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है. किसानों की ओर से आंदोलन (Farmers Protest) और तेज करने तथा जयपुर-दिल्ली एवं दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे को अवरुद्ध करने की घोषणा के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने शहर की सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ा दी है.
किसानों का ट्रैक्टर मार्च राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर से दिल्ली की ओर बढ़ रहा है. हरियाणा पुलिस ने रेवाड़ी बॉर्डर पर जयपुर दिल्ली हाइवे का दोनों तरफ का रास्ता बंद कर दिया है. जयपुर से दिल्ली की तरफ जाने वाला रास्ता दोनों तरफ से बंद किया. किसान ट्रेक्टर लेकर यहां पहुंच गए हैं. योगेंद्र यादव इस मार्च की अगुवाई कर रहे हैं. मेधा पाटकर भी साथ हैं.
स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव (Yogendra Yadav) किसानों के एक समूह के साथ शाहजहांपुर सीमा के पास दिल्ली-जयुपर राजमार्ग पर बढ़ रहे हैं. वह इस रास्ते से दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं.
नए कृषि कानूनों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ताजा संदेश के बावजूद किसान अपने आंदोलन (Farmers Protest) को तेज करने की कोशिश करते दिख रहे हैं. किसान नेताओं ने कहा कि प्रदर्शनकारी सोमवार को सभी जिला कार्यालयों में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेंगे और सुबह 8 से शाम 5 बजे तक भूख हड़ताल करेंगे.
पीएम मोदी ने शनिवार को फिक्की के कार्यक्रम में केंद्र सरकार के सुधारों का बचाव करते हुए कहा: “हम किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें अधिक समृद्ध बनाने के लिए ये सभी पहल कर रहे हैं. आज, भारत के किसान अपनी उपज को मंडियों और साथ ही बाहर भी बेच सकते हैं.” उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र और उससे जुड़े अन्य क्षेत्रों की दीवारों को हटाया जा रहा है.
कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हजारों किसान बीते 17 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं. किसान नेताओं ने नए कृषि कानूनों में संशोधन का सरकार का प्रस्ताव बुधवार को खारिज कर दिया था, इसके साथ ही जयपुर-दिल्ली तथा यमुना एक्सप्रेसवे को शनिवार को अवरुद्ध करके अपने आंदोलन को तेज करने की घोषणा की थी.
किसान नेताओं ने अपनी मांगों पर कायम रहते हुए कहा कि वे सरकार से वार्ता को तैयार हैं लेकिन पहले तीन नये कृषि कानूनों को निरस्त करने पर बातचीत होगी. किसानों ने घोषणा की कि उनकी यूनियनों के प्रतिनिधि 14 दिसंबर को देशव्यापी प्रदर्शन के दौरान भूख हड़ताल पर बैठेंगे.
सिंघू बॉर्डर पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता कंवलप्रीत सिंह पन्नू ने कहा कि रविवार को हजारों किसान राजस्थान के शाहजहांपुर से जयपुर-दिल्ली राजमार्ग के रास्ते सुबह 11 बजे अपने ट्रैक्टरों से ‘दिल्ली चलो’ मार्च शुरू करेंगे. किसान नेता पन्नू ने आरोप लगाया कि सरकार ने आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश की, लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों ने ऐसा नहीं होने दिया. उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने हमें बांटकर आंदोलन को कमजोर करने का प्रयास किया. मैं कहना चाहता हूं कि जारी आंदोलन पूरी तरह 32 किसान संघों के नियंत्रण में है. हम विभाजित करने के सरकार के हर प्रयास को विफल कर देंगे.
”किसानों के साथ बातचीत कर रहे केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों में शामिल केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश ने शनिवार को कहा कि गतिरोध खत्म करने के लिए आंदोलन के नेताओं केो साथ अगले दौर की बैठक शीघ्र बुलाने की कोशिश की जा रही है. प्रकाश ने कहा, “हम शीघ्र बैठक बुलाने की कोशिश कर रहे हैं… हम चर्चा कर रहे हैं. तारीख अभी तय नहीं की गई है.” उन्होंने कहा, “आखिरकार, हमें बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे को सुलझाना होगा. कोई और रास्ता नहीं है. वे (किसान) भी इस बारे में जानते हैं, हम भी जानते हैं.
”नोएडा को दिल्ली से जोड़ने वाले एक मुख्य मार्ग को शनिवार देर रात फिर से खोल दिया गया. चिल्ला बार्डर पर किसानों के धरना प्रदर्शन के चलते एक दिसंबर से नोएडा-दिल्ली लिंक रोड अवरूद्ध था. नोएडा के उप पुलिस आयुक्त (डीसीपी) राजेश एस ने बताया, ‘‘किसान प्रदर्शन स्थल को खाली करने के लिए राजी हो गए और सड़क पूरी तरह से फिर से खुल जाएगी. कुछ प्रदर्शनकारी वहां अभी भी हैं लेकिन वे जल्द ही इसे खाली कर देंगे.
”सितंबर में बनाए गए तीन कृषि कानूनों को सरकार ने कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के रूप में पेश किया है. सरकार का कहना है कि इससे बिचौलिये हट जाएंगे और किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकेंगे. हालांकि, प्रदर्शन कर रहे किसानों को आशंका है कि नये कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था और मंडियां खत्म हो जाएंगी, जिससे वे कॉरपोरेट की दया पर निर्भर रह जाएंगे.