SC- ST एक्ट 1989 के तहत हुए अपराध में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश दिये हैं। SC ने कहा कि अब इस तरह के मामलों में गिरफ्तारी से पहले जांच जरूरी होगी और गिरफ्तारी से पहले जमानत दी जा सकती है। इस मामले से जुड़े केस को दर्ज करने से पहले DSP स्तर का पुलिस अधिकारी प्रारंभिक जांच करेगा। इसलिए किसी सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी से पहले उसके सीनियर से अनुमति जरूरी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को माना कि एक्ट के दुरुपयोग की शिकायतें सामने आ रही थीं।
While hearing a case on the SC/ST (Prevention of Atrocities) Act, SC held that there is no absolute bar for granting anticipatory bail in a matter related to atrocities on SCs/STs, also added that a public servant can be arrested after grant of approval by the superior officer.
— ANI (@ANI) March 20, 2018
महाराष्ट्र की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस दौरान कुछ सवाल उठाए। गौरतलब है कि एससी/एसटी एक्ट के तहत कई मामले फर्जी भी सामने आ चुके हैं। लोगों का आरोप है कि कुछ लोग अपने फायदे और दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए इस कानून का दुरुपयोग कर रहे हैं। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया।
क्या है एससी-एसटी एक्ट
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचार की रोकथाम के लिए है। इसमें कठोर प्रावधानों को सुनिश्चित किया गया है। यह अधिनियम प्रधान अधिनियम में एक संशोधन है और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) (पीओए) अधिनियम,1989 के साथ संशोधन प्रभावों के साथ लागू किया गया है।
इस अधिनियम के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध किए जाने वाले नए अपराधों में समुदाय के लोगों को जूते की माला पहनाना, उन्हें सिंचाई सुविधाओं तक जाने से रोकना या वन अधिकारों से वंचित करने रखना, मानव और पशु नरकंकाल को निपटाने और लाने-ले जाने के लिए तथा बाध्य करना, कब्र खोदने के लिए बाध्य करना, सिर पर मैला ढोने की प्रथा का उपयोग और अनुमति देना,अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को देवदासी के रूप में समर्पित करना ,जाति सूचक गाली देना,जादू-टोना अत्याचार को बढ़ावा देना, सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करना , चुनाव लड़ने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोकना, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को वस्त्र हरण कर आहत करना, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के किसी सदस्य को घर, गांव और आवास छोड़ने के लिए बाध्य करना, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के धार्मिक भावनाअों को ठेस पहुंचाना, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य के विरुद्ध यौन दुर्व्यवहार करना, यौन दुर्व्यवहार भाव से उन्हें छूना और भाषा का उपयोग करना है ।